Aatashin/आतशीं

  

  • 250.00
  • by Ashfaq Ahmad  (Author)
  • Book: Aatashin
  • Paperback: 247 pages
  • Publisher: Gradias Publishing House
  • Language: Hindi
  • ISBN-13: 978-8194871873
  • Product Dimensions: 21.59 x 13.97 x 2 cm

यह एक महागाथा है इंसान और जिन्नात के बीच बनी उस कहानी कीजो जाहिरी तौर पर आपको अलग और अनकनेक्टेड लग सकती हैलेकिन हकीक़त में दोनों के ही सिरे आपस में जुड़े हुए हैं। इंसान की बैकग्राउंड पख्तूनख्वा की हैजहां आप पख्तून पठानों की सामाजिक संरचना के साथ उनके आपसी संघर्ष और जिन्नातों के साथ उनके इंटरेक्शन के बारे में पढ़ेंगे और जिन्नातों की बैकग्राउंड पश्चिमी पाकिस्तान से लेकर तुर्कमेनिस्तानसीरिया और ओमान के बीच रेगिस्तानी और सब्ज़ मगर बियाबान इलाकों में बसी उनकी चार अलग-अलग सल्तनतों की हैंजो कभी एक बड़ा साम्राज्य थीं।

पख्तूनों के बारे में मोटा-मोटी जानकारी यह है कि इनके सरबानीग़रग़श्तख़रलानी और बैतानी नाम के चार गुट होते हैं और हर गुट के 18 से 38 तक कबीले और उपकबीले होते हैं। मौखिक परंपरा के हिसाब से समस्त पख्तूनों के मूल पिता कैस अब्दुल रशीद के चार बेटों के नाम से बने कबीलों से यह गुट वजूद में आयेजिनमें आगे चल कर ढेरों शाखायें बनीं। इनमें ज़मन (बेटे)ईमासी (पोते)ख़्वासी (पर पोते)ख़्वादी (पर-पर पोते) के रूप में परिवार बनता है जिसे कहोल कहा जाता है। कई कहोल आपस में मिल कर एक प्लारीना बनाते हैं और कई प्लारीना मिलने से एक खेल बनता है और कई खेल का समूह त्ताहर यानि एक कबीला बनता है। यह जानने की ज़रूरत इसलिये है कि कहानी में इन बातों का ज़िक्र आ सकता है।

कहानी के केंद्र में इन्हीं के बीच के सदाज़ोईहमारआफरीदीख़सूर कबीलों से सम्बंधित बग़रातमाहेपोराकांवाबीलशाहेलार नाम की जागीरों वाले चार परिवार हैं जो अलग-अलग चारों गुट से हैं और स्वातअपर-लोअर दीर के बीच बसे हैं... और उनके बीच भी ज़बरदस्त अंतर्विरोध हैजहां जान ले लेना एक मामूली बात समझी जाती है और औरत जीतने लायक चीज़ समझी जाती हैजिससे अपना वक़ार (सम्मान) बढ़ाया जा सकता है।

ठीक इनकी तरह ही जिन्नातों की भी भले अलग-अलग छोटी-छोटी ढेरों आबादियां हैं जिन्हें मिला कर अतीत में ग्रेटर अल्तूनिया नाम की एक सल्तनत खड़ी की गई थीजो एक कर्स (श्राप) के चलते रखआनअरामिनपंजशीर और क़ज़ार नाम की चार अलग-अलग टैरेट्रीज में बंट गई। अब हर टैरेट्री न सिर्फ आंतरिक संघर्षों में उलझी हुई है बल्कि चारों आपस में भी जूझ रही हैं। अब जिन्नातों के बारे में भी मोटा-मोटा जान लीजिये कि यह होते क्या हैं और इनकी संरचना कैसी होती है।

किंवदंतियों के अनुसार यह इंसानों से अलग एक एंटिटी होती है जो यूं तो इंसानों से अलग बियाबानों में रहती हैऔर ज्यादातर इबादत में रत् रहती है। इनकी ज़िंदगीमौत और पारिवारिक संरचना भी हमारे जैसी हो सकती है। कहा जाता है कि इंसान ही मरने के एक से आठ हज़ार साल बाद जिन्न बन जाता है और एक अलग आयाम में वास करता है जो यूं तो हमारे साथ ही एग्जिस्ट करता है लेकिन हम उसे नहीं देख पाते। हालांकि इनके बहुत से लोग हमारे बीच इंसानी शक्लों में ही रहते हैंलेकिन हम उन्हें नहीं जान पाते।

मूलतः यह चार कैटेगरी के होते हैंजिनमें मुख्य प्रजाति इफरित होती हैयह जिन्न ठीक इंसानी तर्ज की सामाजिक संरचना रखते हैं और जिन्नातों से सम्बंधित जो भी कहानियां सुनी जाती हैंवे इफरित जिन्नातों की ही होती हैं और प्रस्तुत कहानी में भी जो मूल जिन्नात हैं वे इसी कैटेगरी के हैं। इनके सिवा एक मरीद प्रजाति होती है... यह बड़े ताक़तवर और ख़तरनाक होते हैंहवा में उड़ सकते हैं और इन्हें पानी के पास पाया जा सकता है। इनकी अवधारणा कुछ-कुछ पौराणिक यक्ष के जैसी ही है। इनके सिवा एक प्रजाति सिला भी होती हैइस प्रजाति में सिर्फ जिनी यानि महिला जिन्नात ही होती हैं। यह बेहद ख़ूबसूरत और आकर्षक होती हैंउतनी ही बुद्धिमान भी... इन्हें यक्षिणी के सिमिलर रखा जा सकता है। जिन्नातों की चौथी मुख्य प्रजाति घूल होती है। यह गोश्तखोर और ख़तरनाक होते हैं और कब्रिस्तानों के आसपास पाये जाते हैं... आप तुलनात्मक रूप से इन्हें पिशाच समझ सकते हैं।

यह पूरा कांसेप्ट अरेबिक है और इस्लामिक मान्यताओं से जुड़ा हैइसके सच झूठ होने पर बहस हो सकती हैइसे अंधविश्वास भी कहा जा सकता हैलेकिन कहानी लिखने का उद्देश्य शुद्ध रूप से मनोरंजन होता है और प्रस्तुत कहानी भी ठीक इसी उद्देश्य से लिखी गई है। तो अगर आप तार्किकता और साइंटिफिक फैक्ट्स को साईड में रख कर मात्र मनोरंजन के उद्देश्य से कहानी को पढ़ेंगेतो ही सही मायने में इसका आनंद ले पायेंगे।

इस कहानी के मूल में तीन प्रेम कहानियां हैं और उससे जुड़ा एक व्यापक संघर्ष है जिसकी जड़ में एक कर्स (श्राप) है। एक प्रेम कहानी वह है जो दो इंसानों के बीच है... एक प्रेम कहानी वह है जो दो जिन्नातों के बीच है और एक प्रेम कहानी वह है जिसमें एक इंसान और एक जिन्नात है... असली खेल इसी कहानी में हैक्योंकि यह एक ऐसी पेशेनगोई (भविष्यवाणी) पर टिकी है जिसके हिसाब से इन दो अलग-अलग दुनियाओं में चलता भीषण संघर्ष इसी की वजह से अपने अंजाम तक पहुंच कर खत्म होना था।

कहानी की बैकग्राउंड उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान की स्वात घाटी हैजो पाकिस्तान से अफगानिस्तान तक फैली हैऔर टाईमलाईन है जब अमेरिकी फौजों ने अफगानिस्तान छोड़ दिया था और देश के हर इलाके पर तालिबान का कब्ज़ा होता जा रहा था। स्वातअफगान सीमा से लगा वह इलाका थाजहां तहरीक-ए-तालिबान के कई अलग-अलग गुट सक्रिय थे और पाकिस्तान आर्मी के साथ उनका लगातार संघर्ष होता रहता था। हालांकि इस इलाके में हावी टीटीपी वाले ही रहते हैं और फौज को अक्सर पीछे हटना पड़ता है। यह ग्रुप्स अफगानिस्तान वाले तालिबानियों से अलग होते हैंऔर न सिर्फ इनके बीच आपस में झड़पें होती रहती हैंबल्कि अफगानिस्तान वाले तालिबानियों से भी इनका संघर्ष चलता रहता है।

कहानी में इस्लामिक बैकग्राउंड के चलते उर्दू के शब्दों का भी अच्छा खासा प्रयोग किया जायेगा लेकिन कठिन शब्दों के हिंदी अर्थ ब्रैकेट में लिख दिये जायेंगे। कहानी का शीर्षक है आतशींजिसका अर्थ होता है आग से बना... दरअसल यह शब्द जिन्नात को रिप्रजेंट करता हैजिनके लिये कहा जाता है कि वे बिना धुएं की आग से बने होते हैं। अब चूंकि कहानी का मूल सब्जेक्ट यही प्रजाति है तो इसे दरशाने के लिये ही शीर्षक आतशीं दिया है।

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