प्रोग्राम्ड यूनिवर्स 9

 

इंसान पृथ्वी पर कहाँ से आया

  ब्रह्मांड से इतर एक सवाल और है जो बहुत से लोगों में उलझन पैदा करता है कि इंसान पृथ्वी पर कहां से आया— क्या यह पृथ्वी का मूल प्राणी है या फिर कहीं और से ला कर बसाया गया है।

  इसका एक जो सबसे प्रचलित जवाब है वह धार्मिक लोगों के पास है कि मनुष्य स्वर्ग से ला कर यहां बसाया गया आदम या मनु आदि के रूप में— जिससे आगे चल कर बाकी इंसान पैदा हुए और यूँ इंसानी आबादी वजूद में आई। दुनिया के ज्यादातर लोग चूँकि धार्मिक हैं तो इस मान्यता के अलमबरदार सबसे ज्यादा हैंलेकिन इसमें एक त्रुटि है।
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Archaeological Evidence

  पृथ्वी पर हजारों पुरातत्विक प्रमाण बिखरे पड़े हैं और अगर अंडमानअफ्रीका या अमेजॉन के वनों में रहने वाले आदिवासियों को ही मॉडल के तौर पर ले लें तो उनके जरिये भी समझ सकते हैं कि इंसान ने कीनियापिथेकसरामापिथेकसआस्ट्रेलोपिथेकसहोमोइहैबिलिस और होमोइरैक्टस से ले कर आधुनिक मानव सभ्यता तक लाखों साल लिये हैं इस सफर में वर्तमान तक पंहुचने के लिये— जबकि दो लोगों से शुरु होने वाली सिविलाइजेशन तो शुरुआती दौर से ही सारे ज्ञान से सम्पन्न बताई जाती है।

  मतलब जो इंसानी सभ्यता का इतिहास बताता है कि पहले वे वनों में रहने वाले प्राणी थे जो झुंड में प्रवास करते फिरते थे— उन्हें तब आगहथियारशिकारखेतीपशुपालन जैसी कोई जानकारी नहीं थीजो विकास के अलग-अलग दौर में उन्हें हुई और धीरे-धीरे उनका जीवन बेहतर होता उस दौर में पंहुचाजिसे हम देखते हैं... अगर पहले इंसानों से ही आधुनिक सिविलाइजेशन को मान लेंगे तो यह क्रमिक विकास झूठ साबित हो जायेगा— जबकि इस मानव विकास यात्रा के तो बेशुमार सबूत पूरी दुनिया में बिखरे पड़े हैं और इसके उलट दो लोगों से सभ्यता शुरु होने वाली थ्योरी के कोई भी प्रमाण नहीं।
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डार्विन की इवॉल्यूशन थ्योरी

  इसके बरक्स चार्ल्स डार्विन की थ्योरी है जो मानव सभ्यता को अर्ली प्रिह्यूमन से शुरु बताती है— डार्विन ने यह दावा कभी नहीं किया था कि बंदर से इंसान इवॉल्व हुआ थाजैसा लोग मानते हैं। डार्विन ने एक संभावना व्यक्त की थी कि मानवाकार कपि (एप्स) इंसानों के पूर्वज हो सकते हैं— और इंसान क्रमिक विकास के सहारे बढ़ता हुआ यहां तक पंहुचा है। यानि कोई जीव ऐसा हो सकता हैजिसकी संतानों में दो शाखायें चली होंएक इंसान के रूप में इवॉल्व हुई तो दूसरी एप्स के रूप में— लेकिन इसे कभी प्रमाणित नहीं किया जा सका और मिसिंग लिंक के तौर पर जाना जाता है।
  हालाँकि अब तक हासिल जीवाश्मों से इवॉल्यूशन की थ्योरी की पुष्टि ही हुई हैलेकिन फिर भी एकदम पक्के तौर पर यह प्रमाणित नहीं किया जा सकता है कि इंसान किसी एप्स रूपी प्राणी से ही इवॉल्व हुआ है।
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Evolution Process

  अगर हम डार्विन के नाम पर प्रचलित थ्योरीकि इंसान एप्स से इवॉल्व हुआ— के हिसाब से चलें तो भी हमें कुछ चीजों से जूझना पड़ेगा— जैसे एक संभावना के अंतर्गत मान लें कि एप्स का कोई झुंड भोजन आदि की जरूरत पर जंगल से बाहर निकला और मैदानी इलाके के हिसाब से ढलता गया और उन्हीं की अगली नस्लें इंसानी रूप में इवॉल्व हुईं— तो जो दुनिया में बाकी एप्स हैंउनमें इंसान जितना न सहीलेकिन कुछ बदलाव तो होना चाहिये था— जो नहीं दिखता।

  डार्विन के अनुसार पृथ्वी पर हर प्राणी अपने आसपास के वातावरण के हिसाब से विकसित हुआ हैलेकिन मजे की बात यह है कि यह नियम पृथ्वी के बाकी सारे ही प्राणियों पर लागू होता है लेकिन खुद इंसान पर लागू नहीं होता। वह कभी पृथ्वी के प्राकृतिक वातावरण के अनुरूप नहीं ढल पायाउल्टे उस वातावरण को अपने हिसाब से ढालता है। कई जगहें हैं जहां यह फर्क साफ दिखता है— मसलन सूरज की तेज रोशनी।
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इंसान और बाकी जीवों के बीच मौजूद फर्क

  जिस सीधी रोशनी में भी जानवर और परिंदे बड़ी आराम से देख सकते हैं— इंसान की आंखें चुंधिया जाती हैं। जैसे धूप— इंसान ठंड के दिनों में सहजता से धूप झेल लेता हैलेकिन गर्मी के दिनों में उसके लिये यही धूप झेलनी मुश्किल होती है जबकि पृथ्वी के बाकी लगभग सभी जमीन और आकाश में रहने वाले प्राणी इस धूप को साल भर झेल लेते हैं... या तो उनका शरीर बाल से ढका होता हैया हाथी और गैंडे की तरह उनकी चमड़ी मोटी होती हैलेकिन इंसान को यह दोनों सुविधायें नहीं।

  जैसे पीठ दर्द— जो इंसान को ही होता हैपृथ्वी के और किसी प्राणी को नहीं और इसका कारण ग्रेविटी है— आखिर क्या कारण हैकि हम लाखों साल के सफर में भी इस ग्रेविटी के आदी नहीं हो पाये। जैसे इंसानी शिशू का सर— पृथ्वी पर इतना विकसित भ्रूण कोई जीव नहीं पैदा करता कि जन्म देते समय माँ और बच्चे की मृत्यु ही हो जाये या सिजेरियन करना पड़े— आखिर हम इस मामले में हम अपने ही पूर्वजों (अगर वे एप्स हैं तो) से अलग कैसे हो गये?

  जैसे डीएनए— हमारा 98% डीएनए चिम्प्स से मैच करता हैलेकिन एक बड़ा फर्क है कि चिम्प्स में जहां क्रोमोजोम के चौबीस जोड़े होते हैंवहीं इंसान में एक कम तेईस ही जोड़े होते हैं— और इस वजह से हमारे उनके बीच आर्गन ट्रांसप्लांट नहीं हो सकताजबकि वे हमारे ही पूर्वज कहे जाते हैं। इसके सिवा इंसान के जीन्स में दो सौ तेईस जींस ऐसे पाये जाते हैं जो कि इस पृथ्वी के किसी और प्राणी में नहीं पाये जातेजो कि पृथ्वी के किसी और प्राणी के साथ नहीं है— यह एक्सट्रा  जीन्स हमें एक तरह से अपने ही ग्रह पर अलग कर देते हैं और इन्हीं एक्स्ट्रा जीन्स के आधार पर कुछ वैज्ञानिकों का मत है कि यह एलियन्स ने होमोइरेक्टस में डाले थेजिनसे आगे चल कर होमोसेपियंस का विकास हुआ था।
  जैसे कि प्राकृतिक आपदा को ले लें— ऐसी कोई आपदा जब आती है तो इंसान के सिवा लगभग सभी प्राणी उस आपदा को पहले ही भांप लेते हैंजो इस फैक्ट को स्थापित करता है कि वे इस प्लेनेट से प्राकृतिक रूप से कनेक्टेड हैंजबकि इंसान सुप्रीम स्पिसीज होते हुए भी उन आपदाओं को नहीं भांप पाता और उसे कई तरह के यंत्रों की जरूरत पड़ती है...

  ऐसे ही पृथ्वी की मैग्नेटिक फील्ड हैजिससे पृथ्वी के लगभग सभी जीव कनेक्टेड होते हैं और इसी जरिये से वे चाहे कहीं भी जायें— वापसी का रास्ता ढूंढ लेते हैं और उन्हें हमारी तरह किसी कम्पस या जीपीएस की जरूरत नहीं पड़तीजबकि हम सुप्रीम स्पिसीज होते हुए भी लगभग हर चीज के लिये मशीनों के मोहताज हैं।
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Modification of DNA
  एक चीज और भी है— संतुलन! पृथ्वी पर लाखों जीव हैं लेकिन प्रकृति उनकी आबादी के बीच संतुलन बनाये रहती है लेकिन इंसान पर उसका जोर नहीं चल पाता और आज इंसान सात अरब से ज्यादा हो कर पूरे ग्रह के प्राकृतिक संतुलन को तहस नहस किये दे रहा हैलेकिन प्रकृति उसे अपनी लाख कोशिश के बाद भी सीमित नहीं कर पा रही।
  इन्हीं तर्कों के आधार पर डॉक्टर एलिस सिल्वर ने यह थ्योरी दी थी कि इंसान इस दुनिया का मूल प्राणी नहीं हैबल्कि यहां किसी परग्रही सभ्यता द्वारा लाया गया है।

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Written by Ashfaq Ahmad

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