सोलर सिस्टम

 

हमारा सोलर सिस्टम कैसा है

बिग बैंग के बाद जब एट्म्स बने तब जो पहले स्टार वजूद में आये वे फर्स्ट जनरेशन स्टार्स कहलाते हैं। उनकी केमिस्ट्री थोड़ी अलग थी लेकिन उन्होंने नये एलिमेंट बनाये और अपने अंतिम वक्त में जब उनमें एक्सप्लोशन हुआ तो उनके फेके मलबे से सेकेंड जनरेशन स्टार्स वजूद में आये।
फिर इन स्टार्स ने अपने आखिरी वक्त में सुपरनोवा विस्फोट के जरिये जब गैस और डस्ट के रूप में अपना मटेरियल दूर स्पेस में उछाला तो उससे जो गैलेक्सीज वजूद में आईं उनमें अपनी मिल्की वे है। हल्के एलिमेंट्स नार्मल स्टार के सुपरनोवा से बने थे जबकि हैवी एलिमेंट्स दो न्युट्रान स्टार्स की आपसी टक्कर से।


कभी जहाँ हम हैं वहां गैस और डस्ट का गुबार था, जिससे पहले सन बना और बाद में कई ग्रह और उपग्रह बने जो बाद में वर्तमान रूप में एडजस्ट हुए। इनके ऑर्बिट भी काफी हद तक बदले हैं।
कहने का अर्थ यह है कि एक ग्रह के तौर पर आप अपने आसपास जो भी देखते हैं वह किसी स्टार की मौत के बाद स्पेस में छिटके उसके अवशेषों से बना है और यह प्रक्रिया करोड़ों सालों में सम्पन्न हुई है..
अपने सोलर सिस्टम को ज्यादातर लोग बस इतना जानते हैं कि एक सूरज है और इसके पास इसकी परिक्रमा करने वाले आठ ग्रह हैं.. पहले प्लूटो भी इनमें शामिल था लेकिन फिर उसे प्लेनेटरी परिवार से निकाल दिया गया।

लेकिन इससे सम्बंधित बहुत कुछ ऐसा भी है जो बहुत से लोग नहीं जानते.. सबसे बड़ी बात यह कि इसका फैलाव कितना है या इस सोलर सिस्टम का साईज क्या है। सूरज के सबसे करीबी चार ग्रह बुद्ध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल टेरेस्ट्रियल प्लेनेट हैं, यानि वे ग्रह जिनके पास एक ठोस सतह है जबकि इसके बाद एक एस्टेराईड बेल्ट है जिसमें वह मलबा है जो ठोस सतह वाला एक और ग्रह बन सकता था लेकिन जूपिटर की ग्रेविटी ने उसे असेंबल नहीं होने दिया।
एस्टेराईड बेल्ट के बाद जूपिटर, सैटर्न, यूरेनस और नेपचून ग्रह हैं जो गैस जायंट कहे जाते हैं, यानि जिनके पास ठोस सतह नहीं है और इनके बाद प्लूटो के रूप में एक राॅकी ऑब्जेक्ट है जिसे ग्रह मानने न मानने पर बहस होती रहती है। इसके बाद आईसी कामेट्स की एक लंबी पट्टी है जिसे काइपर बेल्ट कहा जाता है.. पृथ्वी से छोड़ा गया वोयेजर टू चालीस साल के सफर में यहाँ तक पहुंच चुका है लेकिन यह सोलर सिस्टम से बाहर जाने के लिहाज से आधी दूरी है।
इसके बाद इसी तरह के टुकड़ों की एक पट्टी है जिसे स्कैटर्ड डिस्क कहते हैं और सिस्टम के सबसे अंतिम छोर पर जो टुकड़े मौजूद हैं, उन्हें ओर्ट क्लाउड कहा जाता है.. यह सब वह मलबा है जो सौरमंडल के निर्माण के समय बच गया था। वैसे तो सौरमंडल एक लगभग फ्लैट डिस्क के रूप में है और ओर्ट क्लाउड का एक हिस्सा यही है लेकिन ओर्ट क्लाउड के साथ एक खासियत यह भी है कि यह बबल की तरह सोलर सिस्टम को चारों तरफ से घेरे हुए है।

नार्मली यह पिंड इनर सिस्टम के अंदर नहीं आते लेकिन हर दो करोड़ चालीस लाख साल में कुछ ऐसा होता है कि यह लेयर डिस्टर्ब होती है और कई पिंड इनर सोलर सिस्टम में आते हैं, जिनमें से एक ने डायनासोर युग का खात्मा किया था। ऐसा क्यों होता है, इसे ले कर एक नेमेसिस थ्योरी दी गयी थी कि सूरज का कोई बाइनरी पार्टनर रहा होगा जो स्टार नहीं बन पाया, उसे ब्राउन डार्फ स्टार कहते हैं, यह बहुत दूर रहते हुए सोलर सिस्टम की परिक्रमा करता है जो एक लंबे पीरियड के बाद ओर्ट क्लाउड के पास से गुजरता है और उसे डिस्टर्ब कर देता है।
दूसरी संभावना इस बात की भी है कि कोई आवारा ग्रह इसी परिक्रमा को दोहराते हुए ऐसा करता है.. लेकिन यह इतनी दूर की चीजें हैं कि सूरज की रोशनी वहां तक नहीं पहुंच पाती, जिससे इन्हें न ठीक से डिटेक्ट किया जा सकता है और न ही देखा जा सकता है।

Written by Ashfaq Ahmad

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