धर्म यात्रा 8

 

धर्म यात्रा 8

नूह की कश्ती और मनु की नाव


  एक और थोड़ी दिव्य घटना है जो सेमेटिक और आर्य दोनों से चिपकी हुई है— आखिर जड़ तो एक ही है दोनों कीलेकिन दोनों की कहानियों में थोड़ा विरोधाभास है। यह नूह उर्फ वैवस्वत मनुजो सातवें मनु थे— से जुड़ी और जलप्रलय वाली कहानी हैजिसमें दोनों ने पूरे प्लेनेट को डुबा दिया था।

  विरोधाभास यह है कि जहां तौरात नूह की कश्ती को तुर्की के आरारात पर्वत पर टिका बताती हैवहीं मनु की कश्ती को गौरी शंकर चोटी (वर्तमान नाम माउंट एवरेस्ट) पर टिका बताया गया है— अब दोनों जगहें अलग हैं और दोनों कहानी एक जैसी हो कर भी एक नहीं हो सकती तो जाहिर है कि इस हिसाब से भी एक कहानी झूठी हैफिलहाल हम नूह की कहानी पर कंसन्ट्रेट करते हैं।
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Noah's Ark

  तौरात के शुरुआती चैप्टर में ही इस घटना का जिक्र है जहां नूह तीन सौ हाथ लंबीपचास हाथ चौड़ी और तीस हाथ ऊंची कश्ती बनाते हैं— नाप का खास जिक्र इसलिये कि आप समझ सकें कि किसी जहाज के लिहाज से यह बहुत छोटा साईज है। फिर नूह इसमें सभी तरह के पशु पक्षियों के जोड़े और बेटे बहुओं सहित सवार हो जाते हैं

  कहानी के हिसाब से चालीस दिन और रात लगातार पानी बरसाऔर पूरी पृथ्वी पानी में डूब गयी— यह अवस्था एक सौ पचास दिन तक रही। यानि सवा छः महीने बाद पानी उतरना शुरू हुआ और कश्ती आरारात पर आ टिकी। दसवें महीने तक पहाड़ों की चोटियां दिखाई देने लगीं— चालीस दिन बाद नूह ने कौवाऔर उसके सात दिन बाद कबूतर उड़ाया जिससे जमीन दिखने की पुष्टि हुई और उसके दो ढाई महीने बाद नूह वगैरह ने जमीन पर कदम रखा।

जब कश्ती जैसे एक ढाँचे की अधिकारिक खोज हुई

  अब इसमें ट्विस्ट तब आया जब दूसरे विश्व युद्ध के उपरांत 1950 में एक अमेरिकी टोही विमान ने तुर्की के आरारात पर्वत पर नांव जैसी संरचना देखी। इसके दस साल बाद 'लाईफमैग्जीन वालों ने उसकी फोटो छापी और इसी साल अमेरिकी सेना के कैप्टन दुरिपनार ने इसकी सच्चाई जानने के लिये अभियान चलाया लेकिन उसने निगेटिव रिपोर्ट पेश की।
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Structure on Ararat

  13 साल बाद 1977 में अमेरिकी वैज्ञानिक रोन वाट ने और अत्याधुनिक राडार और मेटल डिटेक्टरों जैसे संसाधनों के साथ फिर कोशिश की और जैसे-तैसे यह साबित करने में कामयाब रहे कि वह नाव ही थी। इसके बाद 1986 में तुर्की ने रोन वाट की खोज को मान्यता दे दी और उसे कश्ती-ए-नूह राष्ट्रीय पार्क के रूप में संरक्षित कर दिया। 

  बहरहालयूँ तो एवरेस्ट पर भी घोंघे जैसे समुद्री जीवों के अवशेष पाये जा चुके हैं और चाहें तो हिंदू विद्वान भी मनु वाली जलप्रलय को प्रमाणित कर सकते हैं उनका सहारा ले कर—
  लेकिन इन्हें ले कर वैज्ञानिकों का मत था कि कभी एवरेस्ट असल में पूर्वी अफ्रीका से अलग हुए भूभाग का समुद्र में डूबा किनारा था जो आगे चल कर एशियन प्लेट से टकरायाऔर दोनों प्लेट्स के किनारे एक दूसरे पर दबाव डालते ऊपर उठते-उठते एवरेस्ट हो गये और आज भी ऊपर उठ रहे हैं— वहां इस तरह के अवशेष मिलना बहुत हैरत की बात नहीं।

  एक चीज यह तो हो सकती है कि किसी दौर में इस तरह की भीषण बाढ़ आई होऔर किसी ने ऐसी नाव बनाई हो— बाद में इसे ले कर यह किवदंती चल पड़ी हो... लेकिन बाकी चीजें सिरे से नाकाबिले यकीन हैं।

  तीन सौ हाथ लंबीपचास हाथ चौड़ीतीस हाथ ऊंची कश्ती इतनी बड़ी नहीं हो सकती कि एक साल तक उसमें जीने लायक साधन जुटाये जा सकें— इतनी बड़ी फौज (चरिन्दोपरिंदोंदरिंदों की) की एक हफ्ते की खुराक ही कश्ती को भर देगीक्योंकि जानवर तो भैंसगैंडेजिराफहाथी भी होते हैंजिनकी खुराक बहुत ज्यादा होती है।

किसी एक वातावरण में दूसरे वातावरण का जीव सर्वाइव नहीं कर सकता

  फिर 'सारेमें शेरचीतेबाघतेंदुएलकड़बग्घेसियारभेड़िये जैसे वह गोश्तखोर भी आ जायेंगे जो साल भर में वहां मौजूद सारे जानवरों को ही खा जायेंगे— या उनकी खुराक के लिये ढेरों जानवर रखने पड़ेंगे लेकिन तब यह हर नस्ल का बस एक जोड़ा वाली बंदिश फेक साबित हो जायेगी। या फिर जबर्दस्ती मानना पड़ेगा कि उस एक साल के लिये सबने रोजा (वृत) रख लिया था।

  दूसरे इस श्रेणी में कंगारू जैसे वे खास जानवर भी आ जायेंगे जो पृथ्वी के बस कुछ खास हिस्सों में ही पाये जाते हैं। मतलब सोचना भी हास्यास्पद है कि इतने शाट टर्म में नूह आस्ट्रेलिया जा कर कंगारू पकड़ ले गये और बाढ़ उतरने के बाद खास उसी इलाके में छोड़ने भी गये जहां वे पाये जाते हैं— इस श्रेणी में ढेरों पशु पक्षी हैंजिनके लिये यह कसरत करनी पड़ेगी।
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Animals on Noah's Ark

  फिर यह भी है कि जब बात पूरी पृथ्वी की करेंगे तो आपको समझना होगा कि अलग-अलग भौगोलिक परिस्थितियों में जिंदा रहने वाले पशु पक्षी किसी एक जगह समान तापमान में सर्वाइव नहीं कर सकते। यानि आर्कटिक भालू रेगिस्तानी गर्मी में पागल हो जायेगा और रेगिस्तानी शुतुरमुर्ग आइसलैंड में दम तोड़ देगा।

  यह पशु पक्षी अपने वातावरण में ही जी सकते हैं न कि कहीं भी। यह आज इतनी एडवांस टेक्नालॉजी के होते भले संभव हो कि एयरकंडीशनरों के सहारे अलग-अलग वातावरण के जीवों को एक जगह जिंदा रख लिया जायेलेकिन सभ्यता के एकदम शुरुआती दौर में ऐसा मुमकिन ही नहीं था।

  दूसरे उस दौर में जब सौ किलोमीटर दूर दूसरे शहर में पंहुचने को भी हफ्तों लग जाते थेतब किसी भी एक जगह बैठ कर पूरी दुनिया के पशु पक्षी इकट्ठा कर लेना कैसे भी मुमकिन नहीं था— जबकि इसके लिये यहोवा ने सात दिन ही नूह को दिये थे।
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Ark and other species
  इसके सिवा पृथ्वी पर पशु पक्षियों की कुल मिलाकर कई लाख प्रजातियां हैं और अगर आप सोचते हैं कि इन्हें पकड़ कर आप एक जगह इकट्ठा कर लेंगे तो आप सचमुच बहुत क्यूट हैं। बस यह मान सकते हैं कि किसी जमाने में शायद इतनी विकराल बाढ़ आई होलेकिन उससे समूची पृथ्वी डूब जायेगी.. यह मानने का कोई आधार नहीं।

  यहां आपको एक खास बात पर ध्यान यह देना होगा कि यहूदियों ईसाइयों के लिये पूरी दुनिया का अर्थ सिर्फ योरप होता थामुसलमानों के लिये पूरी दुनिया का अर्थ बस अरब होता था और हिंदुओं के लिये सम्पूर्ण पृथ्वी का अर्थ बस भारत भूमि ही होता था।


पुरानी सभी कहानियों में पहाड़ इतने अहम क्यों हैं

  आपने पढ़ा होगा कि मूसा की यहोवा से मुलाकात कोहे तूर या सिनाई पर्वत पर हुई— वहीं से वह दस ईश्वरीय आज्ञा जारी हुईंलेकिन कभी सोचा है कि पहाड़ ही क्योंयह फरिश्तेखुदादेवता सब के रिश्ते पहाड़ से क्यों निकलते हैं?
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Greek Mythology

  आप प्राचीन रोमनग्रीकइजिप्शन कहानियाँ पढ़ियेउन लोक कथाओं पर बनी 'लैंड ऑफ फराओज'गॉड्स ऑफ इजिप्ट' 'क्लैश ऑफ टाईटंसजैसी हालीवुड मूवीज देखिये— कहीं भी इस सृष्टि को चलाने वाले देवतायहोवाईश्वर इस पृथ्वी से बाहर नहीं रहते मिलेंगे। या तो वे पहाड़ पर मिलेंगे या आस्मान पर (पृथ्वी के वायुमंडल में ही) लटके मिलेंगे— क्यों?

  यह उस अवधारणा की पुष्टि करते हैं जो पंद्रहवीं शताब्दी से पहले आम जन में प्रचलित थी। यानि भूकेंद्रित सृष्टि— आकाश को गैस से बनी लेयर वाली छत की तरह समझा जाता था तो जाहिर है कि इस सृष्टि को रचने वाले भी इस दुनिया के अंदर ही पाये जायेंगे। बस इसीलिए वे पृथ्वी की सबसे अच्छी जगह यानि पहाड़ों पे रहते थे।

यहोवा भी पृथ्वी के पहाड़ पर ही रहता था

  तौरात का शुरुआती चैप्टर लिख रहा हूँ संक्षेप में— खुद अंदाजा लगा लीजिये।

  आदि में परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी की रचना की। पृथ्वी सूनी पड़ी थी और गहरे जल के ऊपर अंधियारा था— परमेश्वर ने कहा उजाला हो और उजाला हो गया। फिर उसने उजाले और अंधेरे को अलग किया। फिर जमीन और आकाश आदि बनाया। फिर पेड़ पौधेजलचरपशु पक्षी आदि बनाया। छः दिन में काम खत्म करके सातवें दिन उसने आराम किया और फिर मिट्टी से आदम को बनाया।

  और पूर्व की ओर अदन देश में एक वाटिका लगाईजहां उसने सब तरह के फल लगाये और ज्ञान का पेड़ भी लगाया। फिर वहां से एक महानदी निकाली जिससे चार शाखायें पीशोनगीहोनहिद्देकेल और फरात निकलीं। फिर आदम के मनोरंजन के लिये उसने सारे तरह के जीव जंतु वहां ला के रखे और फिर आदम की पसली से ईव को बनाया। तब तक उन्हें भले बुरे का ज्ञान न था।
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Adam and Eve

  तब वहां रहने वाले एक सर्प ने ईव को बहका कर वह फल खिला दियाईव ने एडम को— और दोनों की आंखे खुल गयीं कि वे नंगे हैं तो उन्होंने खुद को ढक लिया। तब यहोवा जो दिन के ठंडे समय वाटिका में फिरता थादोनों के न दिखने पर उन्हें ढूंढने लगा और पुकारने पर जब वे सामने आये तो उन्हें ढका देख उसे क्रोध चढ़ गया। उसके पूछने पर जब दोनों ने पूरी बात बताई तो उसने इस डर से कि ज्ञान का फल खा कर वह उसके बराबर हो चुके हैंकहीं जीवन का फल खा कर उसकी तरह अमर न हो जायें— तीनों को (सर्प समेत) श्राप दे कर वाटिका से बाहर निकाल दिया।“

  यानि यह सब नौटंकी पृथ्वी से बाहर नहीं अंदर ही हो रही थी और यहोवा मतलब एक ऐसा ईश्वरजिसे खुद से कुछ पता नहीं था कुछ और फिर यह डर भी कि कहीं आदम उसके बराबर न हो जाये— फिर आगे चल कर आदम के कैन (खेतीधारक) और हाबिल (पशुपालक) नामी बेटे यहोवा को भेंट चढ़ाने पंहुचे— कहां पंहुचे?


यहोवा को भी शाक के बजाय मांस पसंद था

 
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Cain murdered Abel
 
कहीं पहाड़ पर— जहां उसे मांस वाली हाबिल की भेंट पसंद आई और कैन की भेंट उसने ठुकरा दी। जिस पर गुस्सा हो कर कैन ने वापसी में हाबिल को ठिकाने लगा दिया— यहोवा ने खबर ली तो एक वार्तालाप के बाद उसने वचन दिया कि कोई कैन से घात करेगा तो उसका सात गुना बदला लिया जायेगा और इस डर से कि कोई कैन को मार न डाले (यह लोग कहां से आ गये
?), उसे एक चिन्ह दिया और आगे जब कैन की पत्नी ने हनोक को जन्म दिया तो उसने हनोक के नाम पर नगर बसाया— पता नहीं नगर के लिये लोग कहां से आ गये?

  मजे की बात यह कि आगे नूह के चैप्टर के साथ जिक्र यह है कि उन दिनों पृथ्वी पर दानव रहते थे.. सोचिये कि अब यह दानव कहां से आ गयेबहरहाल जितनी कहानियां चलती रहती हैं— पृथ्वी पर ही विचरता यहोवा कूद-कूद कर सबके पास पंहुचता रहता है— न कोई गैब्रियल उर्फ जिब्रील और न कोई सात आसमान या जन्नत दोजख। यह सब चीजें बाद में सामने आती हैं।

  ऐसे ही हिंदू शास्त्रों में आपको जो देवता मिलेंगे वे कहीं पृथ्वी से बाहर नहीं रहते थे बल्कि हिमालय के मनोरम पहाड़ों पर रहते थे। यहीं तिब्बतउत्तराखंडहिमाचल आदि में इन्द्र का देवलोकस्वर्ग और सबसे ऊपरी श्रेणी के पहाड़ों पर ब्रह्म प्रदेशजहां मानसरोवर यात्रा करने जाते हैं।

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