आस्था बनाम तर्क 6

 

आस्था बनाम तर्क

क्या पैगम्बर वाकई आसमानों की सैर पर गये थे

इस जन्नत दोज़ख के कांसेप्ट के साथ कई हदीसें भी जुडी हैं जिनमे कुछ तो रसूल की मेराज से जुडी हैं जो यह बताती हैं कि मेराज के सफ़र पे हुज़ूर साहब ने न सिर्फ जन्नत को देखा था बल्कि दोज़ख की सैर भी की थी।
 
आस्था बनाम तर्क
Masjid-e-aksa
  
इस किस्से को अगर कुरान में देखेंगे तो कुरान अपनी आयत में बस इतना बताती है— वह जात पाक है जो ले गया अपने बंदे को मस्जिदे हराम से मस्जिदे अक्सा तकजिसके इर्द गिर्द हमने बरकतें तय कर रखी हैं... (17:01)। अब इसकी तफ्सीर आपको हदीसों में मिलेंगी जो बताती हैं कि एक रात (ख्वाब जैसी हालत में) जिब्रील उनके घर आये और पैगम्बर को बुर्राक पे बिठा के काबे (मक्का) से मस्जिदे अक्सा (जेरुसलम) ले गये और उसके बाद आस्मानों की सैर कराई।
  
पहले आस्मान पर पूछताछ (जैसे किसी बंगले या फैक्ट्री के गेट पर एंट्री करते वक्त होती है) के बाद दाखिल हुएजहां हजरत आदम अलैस्सलाम से मुलाकात और दुआ सलाम हुई। फिर दूसरे आस्मान पर पंहुचे जहां सेम प्रोसीजर के साथ हजरत याहया और ईसा से मुलाकात हुई— तीसरे पर हजरत यूसुफ सेचौथे पर हजरत इदरीस सेपांचवे पर हजरत हारून सेछठे पर हजरत मूसा से और सातवें पर हजरत इब्राहीम से मुलाकात हुई।
इस सातवें आसमान पर उन्होंने बैतुल मामूर के भी दर्शन किये— यह वह आस्मानी पवित्र जगह है जो काबे की एकदम सीध में पड़ती है (तब यह पता नहीं था कि पृथ्वी रोटेशन की वजह से चारों दिशाओं में घूमती है और उसकी कोई एक सीध नहीं— अब पता भी है तो आप कुछ कर नहीं सकते)... बैतुल मामूर का तवाफ सत्तर हजार फरिश्ते करते हैं और जो एक बार कर लेता है तो अगला मौका कयामत तक नहीं मिलता।
  
यहां दोनों हजरत सिदरतुल मुंतहा पंहुचे— जो सातवें आसमान की आखिरी हद है। यहां हाथी के कान जैसे पत्तों और घड़े जैसे फलों वाला एक पेड़ था जिसकी जड़ों से चार नहरें फूट रही थीं। दो नहरें बातिन हैं जो जन्नत में बहती हैं और दो नील और फरात हैं जो जमीन पर बहती हैं... (गंगा जब स्वर्ग से उतर सकती है तो नील और फरात क्यों नहीं)फिर यहां से जिब्रील आगे नहीं जा सकते थे तो पैगम्बर साहब अकेले गये।
  
वहां न सिर्फ उन्होंने जन्नत के बाग और नहरे कौसर देखीबल्कि दोजख की भी सैर की और कुछ लोगों को सजायें भी होते देखीं। यहां उन्हें उम्मत के लिये पचास नमाजों का इनाम मिला जो बाद में वापसी में हजरत मूसा के टोकनेसमझाने और वापस भेजने के प्रोसेस के बाद पांच नमाजों तक एडिट हुआ। यह विवरण इब्ने कसीरअल तबरीकुरतबीसही मुस्लिमसही बुखारी और सुनन हदीसों से लिया गया है।


आसमानों की परिकल्पना मल्टी-स्टोरी  बिल्डिंग की तरह की गयी है

यह पूरी परिकल्पना ऐसी है जैसे आस्मान सात माले की बिल्डिंग है जहां आप सीढ़ियों के सहारे एक खंड से दूसरे खंड तक पंहुच सकते हैं— इसे मानना न मानना आपके विवेक पर हैलेकिन आज की जानकारी के हिसाब से हम इस बड़ी सी पृथ्वी से बाहर निकल कर थोड़ी जांच पड़ताल तो कर ही सकते हैं।
आस्था बनाम तर्क
Distance from earth to moon
  
पृथ्वी से सबसे नजदीकी पिंड चंद्रमा हैलेकिन इसके बीच भी इतनी दूरी है कि तीस पृथ्वी आ जायेंगी और अगर हम सौ किलोमीटर की गति से चंद्रमा की तरफ चलें तो भी एक सौ साठ दिन लग जायेंगे।
  
इसके बाद हमारा एक नजदीकी ग्रह मंगल है जो 225 से 400 मिलियन किमी की दूरी (परिक्रमण की भिन्न स्थितियों में) पर हैजहां रोशनी को भी पंहुचने में बीस मिनट लग जाते हैंस्पेस में रोशनी से तेज और कोई चीज नहीं चल सकती और रोशनी की गति तीन लाख किमी प्रति सेकेंड होती है। स्पेस में अब तक सबसे दूर उड़ने वाला वोयेजर प्रोबजो 17 किमी प्रति सेकेंड की गति से चल रहा हैहमारे अपने सौर मंडल से ही पूरी तरह बाहर निकलने में इसे सैकड़ों साल लग जायेंगे।
अब अगर हम इस सौरमंडल से बाहर निकलें तो पंहुचेंगे इंटरस्टेलर नेबरहुड में जहां दूसरे सौरमंडल हैं। अपने सोलर सिस्टम में आप दूरी को एस्ट्रोनामिकल यूनिट (पृथ्वी से सूर्य की दूरी) में माप सकते हैं लेकिन बाहर निकलने पर दूरी मापने के लिये प्रकाशवर्ष (9.461 ट्रिलियन किलोमीटर) का प्रयोग करना पड़ता है— यानि उतनी दूरी जितना सफर सूर्य की रोशनी एक साल में करती है।
  
सूरज के बाद हमारा सबसे नजदीकी तारा प्राक्सिमा सेंटौरी है जो हमसे 4.24 प्रकाशवर्ष दूर है— अगर वोयेजर यान की गति से ही उस तक पंहुचने की कोशिश की जाये तो हजारों साल लग जायेंगे। अब यह सोलर मंडल जिस गैलेक्सी का हिस्सा हैखुद उस गैलेक्सी का फैलाव एक लाख प्रकाशवर्ष का हैजिसमें बीस हजार करोड़ तारे और ग्रह हैं और मजे की बात यह है हम रात में उनका सिर्फ एक प्रतिशत देख पाते हैं।
  
अब इससे भी हम थोड़ा और दूर जायें तो हमें मिलेगा लोकल ग्रुप ऑफ गैलेक्सीज— जिसमें 54 गैलेक्सीज हैं और इसका फैलाव (एक सिरे से दूसरे सिरे तक) एक करोड़ प्रकाशवर्ष है।
  
और जब इस सर्कल को जूमआउट करेंगे तो मिलेगा वर्गो सुपर क्लस्टर— जिसका फैलाव ग्यारह करोड़ प्रकाशवर्ष हैतो सोचिये कि यह सर्कल कितना बड़ा होगा— लेकिन यह बड़ा सा सर्कल भी लैनीकिया सुपर क्लस्टर में मात्र एक राई के दाने बराबर हैजिसमें एक लाख तो गैलेक्सीज हैं और इसका फैलाव 52 करोड़ प्रकाशवर्ष का है।
  
अब यह भी सबकुछ नहीं है— बल्कि यह टाईटैनिक लैनीकिया सुपर क्लस्टर का एक छोटा सा हिस्सा भर हैऔर लैनीकिया सुपर क्लस्टर एक छोटा सा हिस्सा भर है उस ऑबजर्वेबल यूनिवर्स काजिसे हम आज तक देख पाये हैं। जिसमें कुल दो लाख करोड़ गैलेक्सीज हैंहमारी पृथ्वी से इसके एक सिरे की दूरी 4,650 करोड़ प्रकाशवर्ष हैयानि कुल फैलाव 9,300 करोड़ प्रकाशवर्ष का है।

ब्रह्माण्ड के हिसाब से हमारी स्थिति लगभग नथिंग है

हमारे यूनिवर्स की उम्र 13.7 अरब वर्ष की मानी जाती हैक्योंकि उससे पहले की रोशनी अब तक डिटेक्ट नहीं की जा सकी— कॉस्मिक इन्फ्लेशन थ्योरी के अनुसार इसके पार भी मल्टीवर्स हो सकता हैजिसके एग्जेक्ट फैलाव का कोई सटीक अनुमान नहीं लगाया जा सकता और संभव है कि पूरा ऑब्जर्वेबल यूनिवर्स ही पृथ्वी पर फुटबाल जैसी (पूरे सुपर यूनिवर्स में तुलनात्मक रूप से) हैसियत रखता हो।
  
बहरहाल 54 गैलेक्सीज वाला इतना बड़ा लोकल ग्रुपऑब्जर्वेबल यूनिवर्स का मात्र 0.00000000001 प्रतिशत हैऔर इसमें इतने ग्रह हैं जितने पूरी पृथ्वी पर रेत के जर्रे भी नहीं हैं। सोचिये हम यूनिवर्स में कहां एग्जिस्ट करते हैं और हमारी हैसियत क्या है।
आस्था बनाम तर्क
Desert like Universe
  
किसी एक रेगिस्तान के सामने खड़े हो कर सोचिये कि किसी एक जर्रे पर कुछ माइक्रो बैक्टीरिया चिपके हों तो क्या आप उनके कर्मउनकी तकदीर लिखेंगेउनके लिये जन्नत दोजख बनायेंगे— ऐसा कोई धार्मिक बुद्धि वाला शख्स ही सोच सकता हैन कि कोई तार्किक बुद्धि वाला शख्स। बहरहालअब पूरे परिदृश्य को सामने रखिये और खुद सोचिये कि पहलादूसरा वाला आस्मान कहां हैं और उनके बीच क्या दूरी है— और खुदा की दुनिया कहाँ हो सकती है?

आलिम कहे जाने वाले लोगों का व्यवहारिक ज्ञान क्या होता है

अच्छा आपको अपने आसपास ऐसे ढेरों लोग मिल जायेंगे जो हदीसों पुराणों से सम्बंधित डेटा कंठस्थ किये रहते हैं और हर बात पर अपने एक्सपर्ट जैसे व्यू देते रहते हैं लेकिन क्या आपको लगता है कि वे वाकई जानकार लोग होते हैं… ऐसे ही एक दिन एक दिन अपने सर्कल में ही इसी टाईप जानकार लोगों के बीच एक मजहबी मसले पर होती बातचीत में मैंने एक सहज सा सवाल पूछा था— कि जो भी आप कह रहे हैंवह आपको कैसे पता चलास्रोत क्या है आपकी जानकारी का?
एक हजरत ने कुछ इस्लामिक किताबों के नाम बतायेअब चूँकि मजमा सुन्नियों का था तो जाहिर है किताबें उन्हीं से रिलेटेड थीं।
  
मैंने एक वाक्ये के उन्हें तीन रूप बताये— एक उनकी किताब में थातो दूसरा शिया हजरात की किताब में और तीसरा जाविया मुस्लिम इतिहासकारों का स्वतंत्र जाविया था। मजे की बात यह कि तीनों एक दूसरे से डिफरेंट थे... और फिर पूछा कि क्या गारंटी है कि इसमें से फलाँ या आपका लिखा सही है।
  
जाहिर है कि इसका कोई जवाब नहीं था। ऐसे मामलों में अपने लिखे पर अटूट आस्था के सिवा और कोई तर्क किसी के पास नहीं होता। ज्यादातर लोगों के साथ तो दिक्कत यह होती है कि उन्होंने वन साइडेड (सिर्फ अपने पंथ से संबंधित) किताबें पढ़ी होती हैं और उन्हें यह अंदाजा भी नहीं होता कि उसी मुद्दे पर सामने वालों ने क्या लिख रखा है।
हाँ बचपन से ही कच्चे दिमागों में यह कूट कूट कर भर दिया जाता है कि बस हमारा लिखा सही है और बाकी सबका लिखा गलत। वे यही मान के बड़े होते हैं और निजी जिंदगी से लेकर सोशल मीडिया की आभासी दुनिया तक लाठी ले के लड़ते नजर आते हैं कि जो उनकी किताबों में लिखा हैजो उन्होंने पढ़ा है— वही असली और आखिरी सच है।
  
आस्था बनाम तर्क
Faith versus Logic
इतना जबरदस्त विश्वासकि जैसे खुद वे उन बातों के चश्मदीद गवाह रहे हों। एक पल के लिये भी उनमें यह शक नहीं पैदा होता कि उन तक पंहुची बातों में झूठ और मिलावट भी तो हो सकती है।
Written by Ashfaq Ahmad

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