सृष्टि सूत्र


क्या हमारे आसपास एक साथ कई दुनियाएं हो सकती हैं?

सामान्यतः मैं रियेक्ट नहीं करता, पर कभी-कभी मुझे कुछ बातें बुरी तरह खीज से भर देती हैं जिनमें एक तो यह होती है कि जब मैं बात कर रहा होता हूँ प्रैक्टिकल विज्ञान की और लोग उसमें दर्शन और अध्यात्म घुसा के मोअम्मा हल करने लग जाते हैं.. ऐसा है भाई, यह आप जैसे लोगों की ही मेहरबानी है कि भारत आज पिछड़ा देश कहलाता है और अमेरिका योरप वैज्ञानिक तरक्की के नाम पर हमसे कहीं आगे हैं.. खुद तो इन बहलावों के आगे दिमाग बंद कर रखे हैं और दूसरों के चिंतनशील, खोजी दिमाग भी बंद करने में लगे रहते हैं। दूसरे मुझे वह स्टीरियो टाईप बातें भी खिजाती हैं जो पीछे वालों ने आपको पकड़ा दी हैं और आप रोबोट की तरह वही दोहराने में लगे हैं, उससे आगे बढ़ना नहीं चाहते.. स्पेस फैल रहा है, उसकी सीमायें अंतहीन हैं.. ब्ला-ब्ला।

देखो भाई, अंतहीन जैसा कुछ नहीं होता, यह हमारी सीमित क्षमताओं के चलते सब्र करा देने लायक बस एक शब्द भर है। हर उस चीज का अंत होता है जो शुरू होती है और किसी भी चीज के अस्तित्व की शर्त शुरूआत है.. अंत उससे ऑटोमेटिक जुड़ा होता है। तो अगर कोई आपको किसी नये विचार की तरफ बढ़ा रहा है तो उस पर दिमाग लगाइये, संभावनाएं तलाशिये.. बजाय इसके कि पीछे सैकड़ों बार कही गई बातों को रोबोट की तरह दोहराते रहें।
अब आते हैं मूल सब्जेक्ट पर.. हालांकि मैंने अपनी कहानी मिरोव में काफी कुछ नया लिखा था, पर यहाँ एक थ्योरी दे रहा हूं जो शायद ही आपने पहले पढ़ा सुना हो.. पर थोड़ी बहुत भी पृथ्वी से बाहर की दुनिया की जानकारी हो तो समझिये इसे और चिंतन कीजिये, बजाय दर्शन, अध्यात्म का चूरन परोसने के या ब्राह्मांड अंतहीन है जैसी स्टीरियोटाईप बातें करने के। हालांकि इस तरह की बातें किताब में ही ठीक रहती हैं क्योंकि यहां से तो कोई भी उड़ा कर वाॅल/ब्लाॅग/वीडियो में चेंप देता है अपनी बता कर लेकिन फिर भी...

मैं इस पूरे सिस्टम को तीन स्केल पर समझने की कोशिश करता हूँ, जहाँ आप लगातार छोटे होते माॅडल से इसे समझिये। साईज, शेप और टाईम सबको एक मिनिमम लेवल पर संकुचित करके हम अपना एक छोटा माॅडल बनाते हैं जहां समय समझ लीजिये कि एक घंटे में एक अरब साल गुजर रहे हैं.. ध्यान रहे कि समय की अवधारणा आपके हिसाब से है.. बाहरी दुनिया में इसकी गति और परिभाषा दोनों बिलकुल अलग है तो इस पूरे माॅडल में जबरन वह प्वाइंट न घुसाइयेगा.. यह आपकी सहूलियत के लिये आपके हिसाब से समझना है।
एक बड़ा सा हाॅल है, हर तरफ से बंद मानिये... इसमें तमाम तरह का कबाड़ पड़ा है। मान लीजिये किसी तरह से खुद बखुद या अगर कोई इस हाॅल का मालिक है तो उसने जानबूझकर इस हाॅल में किसी तरह से प्रेशर पैदा कर दिया। इस प्रेशर ने हाॅल के अंदर स्थितियों को बदल दिया और वहां पड़ा सारा कबाड़, जिसे आप मैटर कह सकते हैं.. वह गतिशील हो गया। इस गतिशीलता के चलते कई भंवर टाईप ब्लैक होल बन गये जिन्होंने अपने आसपास का मैटर खींच लिया और उसे क्रश करते एक सिंगुलैरिटी पर पहुंचा दिया। फिर इस सिंगुलैरिटी पर जमा मटेरियल ने प्रेशर के चलते बिगबैंग के रूप में खुद को उड़ा लिया और उसी कबाड़ से नये किस्म के पदार्थ का निर्माण हुआ और एक ब्राह्मांड बना।

अब यहां दो बातें समझिये, पहली कि उस हाॅल के अंदर यह इकलौती प्रक्रिया नहीं हुई, बल्कि इस तरह की प्रक्रियाओं का सिलसिला चल पड़ा और एक साईकल बन गई। दूसरे कि अब बिखरा हुआ मटेरियल उसी हाल में दूर तक फैलता है, अपनी ग्रेविटी को लूज कर जाता है और बिग फ्रीज/रीप का शिकार हो कर खत्म हो जाता है.. जबकि इसी दौरान कोई एक और ब्लैकहोल के द्वारा उसका तमाम मटेरियल निगल लिया जाता है और वह उसकी सिंगुलैरिटी पर जमा होते-होते एक दिन फूट कर नये ब्राह्मांड की शुरुआत कर देता है। अब यह बिल्कुल जरूरी नहीं कि उस ब्लैकहोल ने बस एक ही ब्राह्मांड का छितराया मटेरियल निगला हो, बल्कि उसने अपने आसपास के और भी ब्राह्मांडों का मटेरियल निगला हो सकता है और सबको क्रश करके, एटम्स को तोड़ कर, उनकी प्रापर्टी बदल कर उन्हें रिलीज किया हो। यह कुछ ऐसा खेल हुआ कि चार अलग-अलग रंगों को ले कर, उन्हें मिला कर पांचवां नया रंग बना दिया गया हो।
बस इसी तरह एक बार स्विच होने के बाद यह शुरू होने और खत्म होने का सिलसिला लगातार चल रहा है और उस हाॅल के अंदर मौजूद सैकड़ों यूनिवर्स में हर रोज कोई एक खत्म हो रहा है तो कोई एक शुरु हो रहा है। इन्हीं में से एक यूनिवर्स के अंदर मौजूद गैलैक्सी के एक सोलर सिस्टम में मौजूद एक ग्रह पर बैठ कर हम सोच रहे हैं कि यह इस सृष्टि का इकलौता ब्राह्मांड है और यह जिस बिगबैंग से शुरू हुआ, वह बस पहली बार हुआ इकलौता बिगबैंग था।

अपनी सीमित क्षमताओं के चलते हम बैठ कर बड़े इत्मीनान से कह लेते हैं कि ब्राह्मांड अंतहीन है, इसकी कोई सीमा नहीं है.. क्यों? क्योंकि हम अपने सबसे पड़ोस के सोलर सिस्टम में मौजूद अपने जैसे ग्रह को देख पाने की औकात नहीं रखते, अपने ही सोलर सिस्टम के सबसे आखिर में मौजूद ग्रह तक जाने की या इसकी सीमाओं को पार कर जाने की हैसियत नहीं रखते तो ऐसा सोचना हमारी मजबूरी है.. लेकिन यह सच नहीं होता। यहीं पे पैदा होते ही सबकुछ 'मान लेने' वाला बंदा सवाल उठा देता है कि स्पेस अब फैल रहा है तो फैलने के लिये पहले से जगह कैसे मौजूद थी.. इसका मतलब बिगबैंग की थ्योरी झूठी है.. क्यों? क्योंकि वह मान चुका है, उसकी जानने में कोई दिलचस्पी नहीं तो उसे छोड़िये और आगे बढ़िये।
अब यहां पे एक कारीगरी और समझिये कि जब ब्लैकहोल मैटर को क्रश करके वापस रिलीज करता है और शुरुआती प्रोसेस में ही मैटर की प्रापर्टी चेंज हो जाती है, तो जरूरी नहीं कि वह हर बार एक जैसा हो, बल्कि वह एक दूसरे से इतना अलग हो सकता है कि एक दूसरे के लिये अनडिटेक्टेबल हो.. यानि एक साथ चार ब्राह्मांड ठीक एक जगह एग्जिस्ट कर रहे हैं लेकिन एक दूसरे को न देख सकते हैं न फील कर सकते हैं और न ही किसी तरह डिटेक्ट कर सकते हैं।
यानि जहां आप अपने कमरे में पड़े सो रहे हैं, ठीक उसी जगह एक ब्राह्मांड के एक ठंडे ग्रह की गुफा मौजूद है, जहां तापमान माईनस हजार डिग्री है, लेकिन उस ठंड को आप नहीं महसूस कर सकते। इसी तरह वहीं मौजूद तीसरे ब्राह्मांड के एक सोलर सिस्टम के एक तारे का कोर मौजूद है जहां का तापमान इतना ज्यादा है कि एटम तक टूट जाता है लेकिन उस भीषण तापमान का आप पर कोई असर नहीं क्योंकि आप दोनों की प्रापर्टीज ही एक दूसरे के लिये अनडिटेक्टेबल हैं। इन्हीं एक साथ एग्जिस्ट करते, पर एक दूसरे के लिये लगभग अनडिटेक्टेबल रहते ब्राह्मांडों को आप अलग-अलग आयाम के रूप में समझ सकते हैं।

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