लिलिथ और पैंडोरा
लिलिथ और पैंडोरा: यानी स्त्री के मिथकीय उद्गम और दोषारोपण
सबसे पुरानी सभ्यता में जो अगली पीढ़ियों तक पहुंचने वाला सबसे चर्चित मिथक था, वह एडम ईव और एक ईश्वर वाला था— सबसे शुरुआती चरण में इस मिथक को एडम और लिलिथ के साथ गढ़ा गया और लिलिथ को एडम की फर्स्ट वाईफ कहा गया। उसे भी ठीक आदम की तर्ज पर मिट्टी से बनाया गया था।
यहां लिलिथ के कैरेक्टर का गढ़न बताता था कि वह किसी ऐसे स्त्री ओझा या समूह की उपज थी जिसके आसपास स्त्री सत्तात्मक समाज था। एक किवदंती के अनुसार लिलिथ एडम की खुद पर डोमिनेंस को नहीं स्वीकारती थी और सहवास में भी टॉप पोजीशन पर रहना पसंद करती थी (यहां वात्सायन के कामसूत्र मत तलाशिये, प्रतीकात्मक रूप से इसे फीमेल डॉमिनेंट सत्ता का प्रतीक समझिये)... जो उसे गढ़ने वाले समूह की सोच को दर्शाता था।
लेकिन बाद के पुरुष वर्चस्ववादी सुमेरियन, अकेडियन और असीरियन समाजों ने उस मिथक को जूं का तूं न स्वीकार कर के लिलिथ के साथ दूसरी बातों को जोड़ दिया कि वह बुराई की प्रतीक थी, ईश्वर के आदेश पर बच्चे पैदा करने को राजी नहीं थी और न उसे एडम की श्रेष्ठता स्वीकार थी इसलिये वह स्वर्ग से पृथ्वी पर भाग आई थी और तब उस तथाकथित ईश्वर ने एडम की पसली से ईव को गढ़ा... यहां भी पसली से गढ़ने में लाजिक न तलाशिये। यह भी प्रतीकात्मक था— यह दर्शाने के लिये कि आदमी ही 'मुख्य' है और औरत मर्द के लिये बनी है।
आपको कहीं यह लिखा नहीं मिलेगा कि ईव की जरूरत इसलिये थी कि दोनों मिल कर प्रजनन कर सकें... प्रजनन के लिये औरत की जरूरत उस शक्तिमान ईश्वर को क्यों पड़ेगी भला जिसने इसी दुनिया में कई द्विलिंगी जीव बना रखे हैं जो नर मादा दोनों की भूमिका निभा लेते हैं— आदम भी ऐसा हो सकता था, लेकिन मिथक गढ़ने वाले इस बात से परिचित थे कि प्रजनन के लिये औरत जरूरी थी इसलिये ईव को गढ़ना जरूरी था लेकिन इस गढ़न में भी उन्होंने अपनी सोच समाहित कर रखी थी कि औरत 'मर्द से और मर्द के मनोरंजन के लिये' ही बनी है।
और इसीलिये जब इन मिथकों को ओल्ड टेस्टामेंट की किताबों में लिखने की नौबत आई तो उन्होंने लिलिथ को सिरे से गायब कर दिया और पहले मर्द के रूप में आदम को और पहली औरत के रूप में ईव को गढ़ा... आज आदम हव्वा को जानने और मानने वालों में शायद आधे लोगों ने लिलिथ का नाम भी न सुना होगा, जो मूल कांसेप्ट के हिसाब से दुनिया की पहली औरत थी।
यहां उस तथाकथित ईश्वर को रचने वालों की मानसिकता का अंदाजा आप इससे भी लगा सकते हैं कि कहीं भी उस ईश्वर का कोई लैंगिक खाका नहीं खींचा गया लेकिन हर संबोधन में वह आपको 'करता' या 'हिज' के रूप में पुरुषवाचक ही मिलेगा।
इस पुरुष वर्चस्ववादी ढाँचे को समझने के लिये उसी दौर की एक ग्रीक माइथाॅलाजी से जुड़ी कथा को भी लिया जा सकता है कि यूनानी परंपरा के अनुसार संसार की पहली नारी पैंडोरा की रचना देवताओं के राजा ज्यूस ने उस नर को दण्डित करने के लिये की थी जिसने प्रोमेथ्युस द्वारा चोरी की गयी पवित्र अग्नि की भेंट को ले लिया था।
उसने देवताओं के कलाकार हिफेस्ट्स को आदेश दिया कि मिटटी और पानी को मिला कर एक ऐसी नारी की रचना करे जिसकी आवाज़ तो नर जैसी हो लेकिन सुन्दरता और सौम्यता में वह अमर देवी जैसी हो।
उसने एथिना (देवी) को आदेश दिया कि उसे अच्छे से अच्छा क्लिष्ठ्तम कपड़ा बुनने की कला का प्रशिक्षण दिया जाये— सुनहरे एफिडाईट को आदेश दिया कि उसके सर को सुन्दरता और लावण्यता के साथ दुखद इच्छाओं और चिंताओं से ऐसा अलंकृत कर दे जो उसके अंगों को शिथिल कर दे— अपने संदेशवाहक हर्मीज़ को आदेश दिया कि वह इस नारी को कुत्ते जैसी बुद्धि और धोखेबाजी भरे आचरण से सज्जित करे।
ज्यूस के आदेश का पालन करने के लिये देवताओं ने उसे बोलने का बहका देने वाला ढंग दिया और जब इस नारी की रचना पूरी हुई तब इसका नाम पैंडोरा रखा गया, क्योंकि सभी देवताओं ने उसे एक न एक ऐसा उपहार दिया था जो नर के लिये अनिष्टता का प्रतीक हो।
ज्यूस के इस आकर्षक उपहार को एपेमैथ्युस को गिफ्ट दिया गया जिसके भाई प्रोमैथ्यूस ने उसे चेतावनी दे रखी थी कि वह देवताओं से कोई उपहार न ले, लेकिन पैंडोरा की सुन्दरता के आगे एपेमैथ्युस इस प्रलोभन से इनकार न कर सका और उसने पैंडोरा को ले लिया।
प्रोमैथ्युस ने एक रहस्यमयी सुराही एपेमैथ्युस के पास इस आदेश के साथ रख छोड़ी थी कि किसी भी परिस्थिति में उसे खोला न जाये लेकिन जब पैंडोरा ने उसे देखा तो वह अपनी जिज्ञासा का निवारण का कर सकी और उसने सुराही को खोल दिया— जिससे दस हज़ार बुराइयां एकदम से उस सुराही से निकल पड़ीं और समस्त मानवजाति को सताने लगीं।
समयानुसार सुराही का ढक्कन बंद हो जाने से केवल आशा ही रह गयी जो सुराही से न निकल सकी। ग्रीक में सुराही को पिथोस कहते हैं और जब लैटिन में इसका अनुवाद हुआ तो यह पिथोस से बदल कर पाईसिस हो गया जिसका अर्थ संदूक होता है.. यहीं से पैंडोरा का पिथोस, पैंडौरा बाॅक्स के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
इस कहानी से यह बात साबित करने की कोशिश की जाती है कि संसार की समस्त बुराइयों की जड़ में औरत है.. यानि पैंडोरा ने एपेमैथ्युस की बात मान ली होती तो संसार में बुराइयों का जन्म ही न होता।
इस तरह इस कहानी से यह भी सिद्ध होता है कि नर निर्दोष है और नारी दोषी है— नारी के यौनाकर्षण का ही परिणाम था कि एपेमैथ्युस गुमराह हो गया था, जबकि उसके भाई ने उसे सख्त चेतावनी दे रखी थी कि वह ऐसा न करे— और चूँकि एपेमैथ्युस ने चेतावनी पर अमल किया लेकिन पैंडोरा ने ध्यान नहीं दिया इसलिये नर, नारी की तुलना में संकल्प, बुद्धिमता और सामान्य चरित्र में श्रेष्ठ है जबकि नारी अनिष्ट, दुःख और ग़लतफ़हमी का मुख्य स्रोत है।






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