अतीत यात्रा 6


क्या रिश्ता है भारतीय संस्कृति और दूसरी संस्कृतियों के बीच

जैसा कि पीछे बताया कि इंसान के विकास में टाॅटेम का सबसे अहम रोल था और अपनी जगह यह खुद धर्म थे, जो एक दूसरे से मिलने के कारण आपस में मिक्स होते रहे जिसमें क्षेत्र विस्तार, संसाधनों पर कब्जे, व्यापारिक मेल मिलाप, किसी अन्य कारण से हुए माइग्रेशन और समुद्र तीर रहने और समुद्र में चलने वाली जातियों (पाॅलीनेशियन, मेलानेशियन, फीनीशियन) के जरिये हुए आदान-प्रदान की मुख्य भूमिका रही। यह सब किसी एक जगह नहीं हुआ बल्कि पूरे संसार भर में हुआ था और इसी वजह से आपको नामों, अवधारणाओं, कथाओं, ईष्टों के बीच संसार भर में साम्य मिल जायेगा।

अब अगर पूरी दुनिया पर न जा कर सिर्फ मिस्र पर ही फोकस करें तो समझिये कि भारत की तरह वहां भी मरने के बाद जीवन के अगले चरण को मानने की प्रथा थी और वहां भी टाॅटेम जातियों की भरमार थी और सबके बीच इतनी जबर्दस्त खिचड़ी बनी है कि अगर मिस्र इस्लामीकरण का शिकार न हुआ होता तो ठीक भारत जैसा ही धार्मिक ताना-बाना वहां भी नजर आता। वहां व्यवस्था के नजरिये से रोमनों के कब्जे में आने से पहले 3188 ईसापूर्व से 332 ईसापूर्व तक 31 राजवंश हुए हैं और उससे पहले आबादियां भारत की तर्ज पर ही फल-फूल रही थीं जिनके पास ढेरों मान्यतायें थीं। पहला राजवंश मेनेस ने स्थापित किया था, उसी दौर के आसपास का मनु को भी माना जा सकता है.. दोनों तरफ ही कैस्पियन सागर की तरफ से फैले आर्यन्स का प्रभाव था। प्ताह उनका सबसे प्राचीन देवता था जो आदि अंड का निर्माता था, इस अंडे से ही सृष्टि की रचना हुई थी.. वह एक पंख वाले सिंहासन पर बैठ कर रचना करता था। यहां भी पंख और अंडा पक्षी के प्रतीक हैं।
बहरहाल उत्तरी और दक्षिणी हिस्सों मेें बंटे मिस्रियों को एक करके मेनेस ने मेम्फीज में राजधानी बनाई थी। मेम्फीज के उत्तर में ऑन नगर था जो बाद में ग्रीक्स के दिये नाम हेलियोपोलिस से चर्चित हुआ, यहां पहले स्तंभ की पूजा होती थी और राजवंश की स्थापना के बाद सूर्य की उपासना होने लगी थी, एक किवदंतीनुसार यहां मंदिर में बेनबेन के रूप में एक पिरामिडनुमा पत्थर था जिस पर सूर्य ने अपने को फीनिक्स के रूप में प्रकट किया था। हेलियोपोलिस के मुख्य देवताओं में रा-आतुम-एटेन (सूर्य), उसकी संतान शू (वायु देवता), तेफ्नूत (वाष्प की देवी) और इनकी बेटियां गेब (पृथ्वी की देवी) और नुत (आकाश की देवी) और इनसे उत्पन्न हुए ओसायरिस,आइसिस, सेत, तेफ्तीज और सब मिलकर एन्नीड कहलाते थे.. जिसके बाहर भी कुछ छोटे देवता थे जिनका मुखिया होरस था।

रा आतुम, होरस, होराख्ती सब उस सूर्य के लिये भी इस्तेमाल होता था और इसे एक दूसरी अवधारणा के साथ गरुड़ के प्रतीक के रूप में भी माना जाता था। कुछ चीजें गौर कीजियेगा कि यहां से वहां तक सूर्य की अलग-अलग रूपों के उपासना होती थी, नाग और गरुड़ कहलाये जाने वाले लोग यहां से वहां तक फैले थे और भारत के दक्षिण में वास करने वाले द्रविड़ भी तब भूमध्यसागर तक फैले हुए थे। सबके टाॅटेम और कहानियां आपस में मिक्स थीं। मिस्र के सम्बन्ध में ओसायरिस अतीत का कोई छोटा राजा रहा हो सकता है जो बाद में देवता बन गया और पहले होरस अलग देवता था लेकिन बाद में उसे ओसायरिस के पुत्र के रूप में स्थापित कर दिया गया जैसे भारत में शैव संप्रदाय के शिव और गाणपत्य संप्रदाय के गणेश पिता-पुत्र हो गये जिनके इस सम्बंध का पुराना उल्लेख नहीं मिलता।
नाग और गरुड़ की प्रमुखता के बाद मत्स्य भी एक मुख्य टाॅटेम था और बेबीलोन वालों के पास एक ऐसा देवता था जो मनुष्य और मत्स्य का मिश्रण था जिसके बार में उनका मानना था कि उसी ने सृष्टि की रचना की है। मत्स्यावतार या मनु के साथ मत्स्य का जिक्र अपने यहां भी मिलता है। मत्स्य मछलियों पर आश्रित रहने वाली कई जातियों का टाॅटेम हो सकता है। उसके बाद एक प्रमुख जीव ड्रैगन था जो थोड़े बहुत रूपांतर के साथ हर तरफ मिलता है। ड्रैगन को जल के साथ जोड़ा गया है.. उसके शरीर पर 117 कांटे होते हैं जिनमें 81 अच्छा प्रभाव डालते हैं और 36 बुरे। वे स्त्री और पुरुष दोनों होते हैं और वे सुंदरी, युवा, वृद्ध, मूषक, सांप, मछली, वृक्ष जैसे कोई भी रूप ले सकते हैं.. वे पानी बरसाते हैं, वज्र के स्वामी हैं। अब ड्रैगन के साथ दुनिया भर का घालमेल गौर फरमाइये..

ड्रैगन की तरह ही इंद्र, ज्यूस (ग्रीक), तर्कु (एशिया माइनर), थोर (उत्तरी योरोप), मेरोदाख (बेबीलोन) का भी बादल और वज्र से सम्बंध है.. वरुण का भी सम्बंध जल से है और मकर का जिक्र उसके साथ ही है जो कि ड्रैगन से साम्य है। वरुण आर्यों और असुरों का देवता था। अपने देवता टीकी को सूर्य पुत्र मानने वाले पोलीनेशियन भी ड्रैगन को कई अलग-अलग रूपों में पूजते थे और इसे मो-ओ मो-को कहते थे। इसके सींग होते थे, मनु के मत्स्य के भी सींग था। बेबीलोनिया का समुद्र का देवता इआ भी सींग वाला था। इया का सम्बंध ड्रैगन तैमात से था जिसे मार कर वह खुद ड्रैगन बन गया था। ड्रैगन के रूप में इआ का सम्बंध सर्प से भी है, कीड़े से भी और मत्स्य से भी। ओसायरिस अपने एक रूप में नील नदी की आत्मा भी है तो एक रूप में सर्प भी है जो समुद्र में पड़ा है और सारे संसार को घेरे है.. विष्णु का शेषनाग भी समुद्र में पड़ा रहता है।
जापान में भी ड्रैगन का जल से संबंध है, वह जल को बांध लेता है। मिस्र में फिरौन ओसायरिस या होरस का अवतार होता था क्योंकि उसने ड्रैगन को मारा था और चीन में सम्राट ड्रैगन का अवतार था, ड्रैगन जहां मिस्र में विनाशक जल था वहीं चीन में वह पोषक और पालक जल था। चीन में ड्रैगन जल देवता था, ड्रैगन धन का स्वामी था जो कुएं में रहता था। जेरूसलम के पास एक ड्रैगन कूप था जैसे कूप स्काॅटलैंड से आयरलैंड तक मिलते हैं। चीनी यिनलिन पुस्तक में ड्रैगन प्रकाश भी फैलाता है.. उसके आंख खोलने और बंद होने से दिन और रात होते हैं। ड्रैगन उस लाश के रूप में भी चीन में वर्णित है जो जीवित होकर चलता है और अरूप होकर रक्त चूसता है।

चीनी ड्रैगन की तरह भारतीय परंपरा में नाग भी दिशाओं की रक्षा करते थे। सागर नागराजा था.. जापान में नागराजा नेप्चून को कहते हैं। बौद्धों में नाग के रूप में मनुष्य बनाकर उसके सिर पर नागछत्र बनाते थे, जैसा मिस्र में भी होता था। नागकन्या आधी स्त्री आधी सर्प होती थी.. यह रूप तिब्बत चीन और जापान में भी मिलता है। तिब्बत में नाग का ऊपरी धड़ मनुष्य का और नीचे का सर्प का होता है.. सिर पर सींग है और उनके पंख भी हैं। भारत में नाग के शत्रु गरुड़ थे जो उसे पंजे में पकड़ कर उड़ते थे.. गरुड़ और नाग का युद्ध बेबिलोनिया में भी है। बेबीलोनिया में 'जू' गरुड़ देवता था.. आशुर्बनिपाल के पुस्तकालय में पत्थर की ईंटों पर वह चित्रित है। 'जू' को सूर्य (शम्स) ने मारा था.. दूसरी कथा में 'जू' को सर्प ने मारा था.. वह सर्प बैल के शरीर में छिपता था।
बैल मिस्र में पूज्य 'अपिस' था.. बैल क्रीट से समुद्री व्यापारिक मार्ग से भूमध्यसागरीय शहरों तक फैली मिनाओन संस्कृति में भी पूज्य था.. बैल भारत में शिव का वाहन है जिसके पास ही नाग रहता है। यहूदी पहले बैल की पूजा करते थे जिसे मूसा ने रोका था। गरुड़ बेबीलोनिया की कथा में बैल को खाने आता था, तभी सर्प निकल कर उसे मार डालता था। बेबीलोनिया की ही तरह पोलिनेशिया की कथा में भी गरुड़ और नाग की शत्रुता और युद्ध का उल्लेख है। मिस्र में एक बड़ा पक्षी बनाते थे, जिसकी जांच में लड़ता हुआ सांप होता था। मैक्सिको में भी एक ऐसा ही चित्र एक प्लेट में बना कर दरवाजे पर रखा जाता था। 'इलियड' में भी गरुण सर्प को लेकर उड़ता दिखाया गया है। सर्प उसे डसता है.. गरुड़ छोड़ देता है। गरुड़ और सर्प के महायुद्ध का ऐसा वर्णन महाभारत में भी आता है। मिस्र में होरस देवता गरुड़ था और सेत देवता सांप.. तिब्बत में सर्प और पक्षी मिलकर एक पशु के रूप में चित्रित थे।

बौद्ध परंपरा में नाग का शत्रु नेवला कुबेर के हाथ में है जो कि एक यक्ष (पक्षी) पर चढ़ता है। एलाम में सिंह ड्रैगन है जिसका सिर गरुड़ का सा है, उसके पंख हैं, अगले पंजे गरुड़ के से हैं पिछले पैर शेर के से हैं। तरमूज देवता अपने एक रूप में सुमेरियन नगर लगश में निनगिरसू के रूप में सिंहमुखी गरुड़ था। बेबीलोनिया के इश्तार द्वार का ड्रैगन गरुड़ नाग और सिंह का मिलाया रूप है। उसके सींग भी चित्रित थे।मिस्र देवता थाट गरुड़मुखी मनुष्य था, सेत पक्षीमुख था, रा पशुमुख, बेस सिंहमुख, अनुबिस सियारमुख। इस तरह के चरित्र भारत में भी बहुतायत मिल जायेंगे। इलियट स्मिथ के मतानुसार अमेरिका में भी प्राचीन काल में ही ड्रैगन मत का विश्वास पहुंच चुका था
इसी तरह सुअर भी अलग-अलग जगहों पर मिलता है.. सेत सर्प के साथ काले सुअर के रूप में भी चित्रित है, जिसे होरस ने मारा था जबकि ओसायरिस अच्छे देवता के रूप में भी सुअर माना गया है। फिर भी मिस्री सुअर को गंदा मानते थे, छू जाने पर नहाते थे, उनके पालक मंदिर में वर्जित थे.. मिस्र और अरब में भी उसी आधार पर गंदा मानते थे जबकि एकिअन, गाॅल, स्कैंडिनेवियन, कैल्ट सुअर को अच्छा मानते थे। भारत में सुअर वराह अवतार के रूप में भी है और इसे गंदा भी समझा जाता है। रोम का प्रधान चिन्ह भी सुअर था। यह प्रवृत्ति आपको वर्तमान युग में भी उसी तरह मिल जायेगी। कुल मिलाकर कहने का मतलब है कि अपनी संस्कृति या धर्म या नस्ल को श्रेष्ठ मानते गर्व की ग्रंथि मत पालिये.. यह जो अपने को यूनीक समझने की सोच है, इससे छुटकारा पाइये। अतीत में झांकेंगे तो सबकुछ इतना ज्यादा एक दूसरे में उलझा हुआ मिलेगा कि आप यह तय ही नहीं कर सकते कि किसने किससे क्या लिया और मूल विचार किसका था। अगर सेमिटिक ने आगे पूरी दुनिया की शक्ल न बदली होती तो शायद भारत जैसी व्यवस्था पूरी दुनिया में देखने को मिलती।

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