अतीत यात्रा 7


कैसे अब्राह्मिक धर्म के कांसेप्ट अस्तित्व में आये

सेमिटिक का प्रभाव दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी पर है और इसके फाॅलोवर्स का मानना है कि इनका ईश्वरीय कांसेप्ट आदि काल से है, इनके जाने-पहचाने ईष्टों के साथ आगे बढ़ती दुनिया पहले इंसान आदम से आबादी बढ़ाती वर्तमान तक पहुंची है लेकिन सच यह है कि अगर आप कोई टाईम मशीन बना कर सिर्फ तीन हजार साल पीछे चले जायें तो इस कांसेप्ट का नामोनिशान नहीं मिलेगा। न कोई उन ईष्टों को जानने वाला मिलेगा, मोटे तौर पर फिरौन के साथ जोड़े जाने वाले मूसा को ही ले लीजिये तो मिस्र के इतिहास में कोई मूसा नजर न आयेगा.. भले मेनेस से ले कर रेमेसिस, मेर्नेप्टेह तक सबके पूरे जीवनकाल का रिकार्ड मौजूद हो। मतलब जैसे तीन से साढ़े तीन हजार साल पहले लावी की अरबी कविता या मितन्नी की संधि के रूप में वैदिक देवताओं के सबूत मिलते हैं, वैसा कुछ नहीं मिलेगा। कुछ राजाओं के नाम भले मिल जायेंगे जो ऑर्डिनरी पर्सन ही होंगे न कि कोई डिवाईन कैरेक्टर।

इस बात को समझने के लिये तीन हजार साल पीछे के धर्मों को जब खंगालेंगे तो चार तरह के अलग-अलग कांसेप्ट नजर आयेंगे, जिनके प्रभाव बड़ी आबादियों पर पड़े और सेमेटिक कांसेप्ट इनमें कहीं नहीं था, हां छोटी-छोटी तो हजारों ईश्वरीय अवधारणायें फैली हुई थीं जिनका जिक्र पीछे किया। बड़े कांसेप्ट में दो आर्यों की दो शाखाओं के थे, एक तो जरथुस्ट्र की चलाई शाखा जो फारस में प्रभुत्त्व रखती थी जिसे पारसी धर्म (जोरोआस्ट्रियनिज्म) कह सकते हैं और दूसरी जो भारत की तरफ प्रभुत्व रखती थी जिसे वैदिक धर्म कह लीजिये। दोनों के दर्शन उलट थे.. जोरोआस्ट्रियनिज्म में अहुर मज्दा के रूप में अच्छी शक्ति को और अंगीरा माइन्यू के रूप में बुरी शक्ति को मान्यता दी गयी थी। असुर वहां हीरो थे और वहीं वे वैदिक धर्म में खलनायक थे, जो इसी शाखा का दूसरा बड़ा धर्म था। दोनों के कांसेप्ट में विरोधाभास था लेकिन ढेरों समानतायें भी थीं जो पूजा पद्धति से ले कर दोनों के ग्रंथों तक में मिलती हैं।
इसी तरह दो बड़े कांसेप्ट भूमध्यसागर के किनारों पर मौजूद था, एक ग्रीस में था जिसमें ज्यूस मुख्य देवता था (वेदों में इंद्र के पिता द्यौस थे और संभवता यह दोनों एक ही चरित्र थे) और दूसरे कामों के लिये दूसरे कई देवी देवता थे। दूसरा मिस्र में था जिसमें रा-एटेन, ओसायरिस, होरस के रूप में ढेरों देवी देवता थे, हालांकि भारत की तरह वहां भी टाॅटेम अवधारणायें ढेरों थीं लेकिन अगर तीन हजार साल पहले की बात करें तो यही मुख्य कांसेप्ट बन चुका था। ईसा से पहले के दो हजार सालों में देखेंगे तो सबसे पहले पारसी धर्म का सत्ता के साथ विस्तार हुआ और यह खूब फला फूला, फिर मिस्रियों ने भी सत्ता विस्तार किया और उनका कांसेप्ट फैला जो मेडेटेरेनियन के आसपास सब जगह गया.. तत्पश्चात ग्रीक्स ने अपना वर्चस्व स्थापित किया लेकिन उनके कमजोर होने और रोम के सशक्त होने के बाद दोनों के कांसेप्ट एक हो गये और फिर उनका धर्म फारस से ले कर योरप तक फैला।

इस बीच सेमिटिक कैसे वजूद में आया.. तो अतीत में हुए एक राजा या मुखिया, जो भी समझिये.. जेकब/याकूब उर्फ इस्राएल ने मिस्र से निकल कर कनान (अब का इज्राएल/फिलिस्तीन) में अपने समूह को बसाया और यही लोग इज्राएली कहलाये। आगे यह डेविड और खासकर सोलोमन के दौर में एक बड़े राज्य के रूप में ढले और सोलोमन के बाद दो अलग राज्यों में बंट गये। इस्राइल की मुख्य आबादी तब तक पवित्र ठहराये जा चुके शहर जेरुसलम में रहती थी जिसे 587 ईसापूर्व बेबीलोन के राजा नेबुचेडनेजार ने जीत लिया और शहर को ध्वस्त करके बचे हुए लोगों को दास बना कर बेबीलोन ले आया जहां यह अगले पचास साल रहे। यहां इन गुलामों ने कुछ ऐसा किया जिसने आगे चल कर पूरी दुनिया बदल दी।

यहां इन्होंने अपने राजाओं, मुखियाओं और महापुरुषों को ईश्वरीय शेड देते (यह उस वक्त का रिवाज था, भारतियों के देवता भी ऐसे ही बने हैं) अपना इतिहास लिखा जो मुकम्मल तौर पर दुनिया की शुरुआत से तब तक के इतिहास को ईश्वरीय पुट देने वाला एक कांसेप्ट था। यह कई किताबों की शक्ल में था, जिनमें सबसे मुख्य तोरह और जबूर कह सकते हैं, जिन्हें ईश्वरीय किताब माना जाता है। फिर फारस के सबसे ताकतवर हुए सुल्तान सायरस ने 539 ईसापूर्व बेबीलोन को जीत लिया और उन यहूदियों को उस गुलामी से आजादी दे दी, जिसे वे कई दशकों से भुगत रहे थे।
उन्हें इस बात की इजाजत भी मिल गयी कि वे अपना रचा गढ़ा सब मटेरियल साथ ले जा सकते थे और इस तरह वे वापस जेरुसलम आ कर बसे। फले फूले, कई बार उजाड़े गये, वापस बसे और आसपास के मुल्कों तक फैले.. तब आज के जैसे मुल्क तो थे नहीं तो कोई रोक भी नहीं थी। हां उनका मुख्य पुजारी वर्ग जेरुसलम में ही टिका रहा। फिर कोंटेस्टाईन का दौर आया। तब तक योरप में हर तरफ रोमन धर्म का ही प्रभुत्व था.. ईसा की एक्चुअल कहानी क्या थी, इस विषय से किनारा करते यह समझिये कि उनके वक्त के काफी बाद (लगभग 300 साल) रोमन सम्राट कोंटेस्टाईन ने क्रिश्चैनिटी को स्थापित किया था और इसके जो भी कारण रहे हों पर धीरे-धीरे इसका प्रभाव योरप से मिडिल ईस्ट तक हो गया।

क्रिश्चियनिटी रोमन+ग्रीक धर्म को ओवरटेक करती चली गई और चर्च के प्रभुत्व के साथ उस कांसेप्ट को शैतानी कांसेप्ट बना दिया गया। क्रिश्चियनैटी में भी कई किताबें लिखी गयी थीं जिनमें मुख्य इंजील कह सकते हैं जो तीसरी ईश्वरीय किताब थी। यहूदियों वाली किताबों को मिला कर ओल्ड टेस्टामेंट और बाद वाली सब किताबें मिला कर न्यू टेस्टामेंट बना। ध्यान रहे कि इन्होंने अपने से पीछे का वही सब लिया था जो ओल्ड टेस्टामेंट में था लेकिन कई चीजें आउटडेटेड लगीं, या समय के साथ एडजस्ट करती न लगीं तो उन्हें एडिट कर दिया गया.. उदाहरण के लिये लिलिथ का किरदार ले लीजिये या द वाॅचर नाम के एंजेल्स ले लीजिये। इस बारे में फिर कभी बात करेंगे। रोमनों ने सत्ता के सहारे क्रिश्चियनैटी अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों में पहुंचाई और बाद के औपनिवेशिक काल में वह पूरी दुनिया तक फैली।
कोंटेस्टाईन के चार सौ साल बाद इस्लाम की शुरुआत हुई और चौथी ईश्वरीय किताब वजूद में आई, ईसाइयों ने यहूदियों का कांसेप्ट अडाॅप्ट किया था उनके कंटेंट को एडिट करते हुए। इन्होंने न्यु टेस्टामेंट के कंटेंट को एडिट करते हुए वह पूरा कंटेंट ले लिया.. नये जमाने की नैतिकता को सूट न करने वाली बातें हटा दी गयीं, मसलन इसाई लिख सकते थे कि पैगम्बर लूत की बेटियों ने उनके साथ संभोग करके प्रजनन किया लेकिन यह अब उस चीज को नहीं लिख सकते थे क्योंकि यह तब की नैतिकता के खिलाफ हो जाता। पैगम्बर की मौत के बाद पहले खलीफा ने इस्लाम को अरब भर में फैलाया और बाद के खलीफाओं ने आसपास के देशों तक फैलाया जबकि बाद में तुर्कों के ऑटोमन साम्राज्य के साथ दूर दराज के देशों तक इस्लाम फैला.. कैसे फैला? जाहिर है कि सत्ता के सहारे।

अब कुछ बातों पर गौर कीजिये.. इस कंटेंट को कहां लिखा गया? बेबीलोनिया में.. उस वक्त बेबीलोन पर मिस्र से ले कर ग्रीक्स और फारस तक का प्रभाव मौजूद था। पीछे अरब के 17 सौ ईसापूर्व हुए कवि का उदाहरण देखा था जिसे वेदों के बारे में पता था, 14 सौ ईसापूर्व में उसी लोकेशन के आसपास मितन्नी राजवंश स्थापित था जो अपनी संधि में वैदिक देवताओं को साक्षी बनाता था। पास के मिस्री कल्चर में एटेन के रूप में एकेश्वरीय अवधारणा भी प्रचलन में आई थी और उनके पूर्व में फारस भर में दुनिया का पहला प्राचीन एकेश्वरवादी धर्म फैला हुआ था, जिसे एक पैगम्बर जरथुस्ट्र ने चलाया था और सबको अहुरमज्दा का संदेश दिया था।

जाहिर है कि जो बेबीलोन में बैठ कर वह धार्मिक साहित्य गढ़ रहे थे, उन्हें आसपास की दुनिया के नामों, ईष्टों, अवधारणाओं, कहानियों और परंपराओं की जानकारी थी.. वे कोई अंजान लोग नहीं थे तो उनकी कहानियों में असली किरदार ढूंढने के बजाय दूसरी अवधारणाओं के चरित्रों से साम्य ढूंढिये। ढूंढिये ब्रह्म और अब्राहम के बीच की समानता को, ढूंढिये नोआ और मनू के बीच के साम्य को और ढूंढिये सर्वव्यापी बाढ़ जैसी कहानियां जो दोनों तरफ मिलती हों और ढूंढिये कि कहीं फारसी भी तो नमाज नहीं पढ़ते थे या उनके पैगम्बर भी तो कहीं किसी उड़ने वाले जीव पर बैठ कर आस्मानों की सैर पर नहीं गये थे। या मुसलमानों का अल्लाह सीरियन के चंद्र देवता के परिवार से तो नहीं आया। हो सकता है कि आपको एकदम से बहुत कुछ समझ में आ जाये.. पुरानी लीक से हट कर कुछ खोजने की कोशिश तो कीजिये।
चलिये एक कथा मैं सुना देता हूँ.. अशूर्बनिपाल के संग्रहालय में एक गिलगमेश नाम का ग्रंथ है जो पत्थर की ईंटो पर सुमेरियन में उकेरा गया था जिसमें 3000 ईसापूर्व हुए इसी नाम के राजा से सम्बंधित कथा है जो अपने आखिरी वक्त में उस पूर्वज जियुसुद्दु से मिलता है जिन्होंने ईश्वर की तरफ से बाढ़ की चेतावनी मिलने पर एक बड़ी नाव बनाई और पशु-पक्षी, इंसान समेत सबके जोड़ों को उसमें सुरक्षित करके सर्व-व्यापी जल प्रलय से बचाया था।
अब समझिये, एक कथा उरूक की है और एक कथा बेबीलोन में लिखी गयी, दोनों मेसोपोटामिया के प्राचीन नगर हैं, तीसरी कथा मनु के साथ लिखी गयी जिसे लिखने वाले उसी परिवार का हिस्सा रहे हो सकते हैं जिन्होंने जियुसुद्दु की कथा लिखी.. क्या कुछ मिक्स मैच नहीं लगता? तो जब आप पुराने धर्मों, उनके अतीत को खंगालने बैठेंगे तो आपको नाम, परंपरायें, आस्था और कहानियां, बहुत कुछ आपस में मिलता, एक दूसरे से लिया नजर आयेगा.. मसलन कहीं गाय वैतरणी पार करायेगी तो कहीं बकरा पुल सरात पार करायेगा।

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