क्या दुनिया गोल है

 

क्या दुनिया वाकई गोल है 

कमाल यह है कि आज इतने आधुनिक युग में भी यह बहस करने वाले मौजूद हैं, तमाम तो ऐसे भी मिल जायेंगे जो चपटी मानते होंगे। ऐसे सभी लोगों को चाहिये कि वे आंख के साथ दिमाग खोल कर चाँद और सूरज को देखें, किसी प्लेनेटोरियम में जा कर और देखे जा सकने लायक ग्रहों को देखें और खुद से यह सवाल करें कि अगर यह सब भी गोल हैं तो हमारी पृथ्वी ने ऐसी कौन सी खता की थी कि वह गोल नहीं होगी।
खैर.. इससे इतर अगर इसपे चर्चा की जाये कि स्पेस में सभी बड़े पिंड गोल ही क्यों होते हैं तो उसकी सबसे बड़ी वजह होती है उनकी स्ट्रांग ग्रेविटी। ग्रेविटी को आप पिंड के एकदम सेंटर में मौजूद कोर की पाॅवर समझिये जो अपने आसपास की हर चीज को अपने चारों तरफ से इक्वली खींचती है, यानि हर तरफ से.. तो इस कंडीशन में उस कोर पर जो मटेरियल जमा होगा, वह एक गोल बाॅल की शक्ल में ही वजूद में आयेगा।

आप एक सवाल कर सकते हैं कि हम पृथ्वी की सतह पर तीन चार सौ मीटर ऊंचे कृत्रिम ढांचे कैसे बना लेते हैं, तो यह सब तब हो सकता है जब पिंड अपने फिक्स रूप में आ चुके, जब यह बन रहे थे तो यह लिक्विड रूप में थे और अपने ऊपर मौजूद सारे मटेरियल को बराबर से फैला रहे थे, इसलिये इनके शेप गोल हुए।
लेकिन क्या यह परफेक्ट राउंड हैं? तो इसका जवाब है नहीं.. चूंकि यह तेजी से अपने अक्ष पर रोटेट होते हैं तो इससे एक सेंट्रीफूगल फोर्स पैदा होती है जो सारे माॅस को दूर धकेलना चाहती है। जाहिर है कि इस फोर्स को ग्लोब के एकदम बीच का हिस्सा सबसे ज्यादा महसूस करता है और ध्रुवीय हिस्सा सबसे कम, क्योंकि वहां रोटेशन की गति धीमी होती है.. इसलिये इस बीच के हिस्से में एक कूबड़ सा निकल आता है, जिसे इक्विटोरियल बल्ज कहते हैं और इस वजह से जो ध्रुवीय हिस्से होते हैं वे थोड़े नीचे दब कर फ्लैट हो जाते हैं।

इसे समझने के लिये एक गोल गुब्बारे में पानी भरिये और उसे जोर से नचाइये.. आप पायेंगे कि उसका बीच का हिस्सा बाहर की तरफ बढ़ गया और नीचे ऊपर वाले हिस्से दब गये.. साधारण भाषा में गुब्बारा कुछ हद तक चपटा हो गया। एक्चुअली यही अपने एक्सिस पर तेजी से रोटेट होते ग्रहों के साथ होता है। यानि पृथ्वी को ही लें तो इसके इक्वेटर की एकदम सीध में स्पेस से इसे देखेंगे तो इसका इक्विटोरियल डायमीटर (पूर्व से पश्चिम) 12,756 किमी होगा, जबकि पोलर डायमीटर (उत्तर से दक्षिण) 12,713 किमी... यानि 43 किमी कम।
एक्सेस पर रोटेट होने की वजह से निकले इस कूबड़ को इक्विटोरियल बल्ज कहते हैं और यह बल्ज पृथ्वी पर 43 किमी, मार्स पर 50 किमी, जूपिटर 10,175 किमी और सैटर्न पर सबसे ज्यादा 11,808 किमी है।
वैसे पृथ्वी का शेप राउंड नहीं तकनीकी भाषा में ऑब्लेट स्फेरायड है लेकिन आम भाषा में मोटे तौर पर इन्हें हिंदी/उर्दू भाषी गोल ही कह सकते हैं जबकि जनरली स्फेरिकल भी कहा जाता है।
Written By Ashfaq Ahmad

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